BSEB 12th Biology Long Question Answer 2024: अति महत्वपूर्ण प्रश्न, परीक्षा 2024 में बहुत खास प्रश्न, Bihar Board
प्रश्न 1. पृथ्वी पर स्तनधारी के विकास के बारे में बताएँ।
उत्तर- पृथ्वी पर पहला स्तनधारी प्राणी श्रू (मंजोरू) थे इसके जीवाश्म छोटे आकार के हैं। स्तनधारी प्राणी जरायुज होते हैं तथा उनके अजन्में बच्चे माँ के शरीर के अंदर (गर्भ) सुरक्षित रहते हैं। ये प्राणी छोटे-छोटे खतरों के प्रति संतर्क रहने एवं बचाव करने में बुद्धिमान होते थे। जब सरीसृपों की कमी हुई तब स्तनधारी प्राणियों ने स्थल पर कब्जा किया। यहाँ पर दक्षिण अमेरिकी स्तनधारी घोड़े से मिलता-जुलता हिप्पोपोटेमस (दरियाई घोड़ा), भालू तथा खरगोश आदि थे। महाद्वीपीय विचलन के कारण जब दक्षिणी एवं उत्तरी अमेरिका एक-दूसरे से जुड़े तो इन जीवों ने उत्तरी अमेरिका तक विस्तार बनाया और ये उत्तरी अमेरिकी प्राणि जगत पर छा गए ओर इसी क्रम में ये जीव उत्तरी जन्तुओं के दवाब में आ गए और वे बहुसंख्य हो गए। महाद्वीपीय विस्थापन के कारण ही ऑस्ट्रेलियाई स्तनध ारी (कंगारू) जीवित रहे; क्योंकि उन्हें दूसरे अन्य स्तनधारी जीवों से प्रतियोगिता कम थी।
प्रश्न 2. जनन क्या है? जनन से क्या लाभ है?
उत्तर-वो विज्ञानीय प्रक्रम जिसमें एक जीव अपने समान एक छोटे से जीव (संतति) को जन्म देता है उसे जनन कहते हैं। जनन जीवित प्राणियों का विशेष लक्षण हैं, परन्तु प्रत्येक जीव में अपने को बहुगुणित करने तथा संतति उत्पन्न करने की अपनी विधि होती है। जीव किस प्रकार से जनन करता है उसके वास स्थान, उसकी आंतरिक शरीर क्रिया विज्ञान तथा अन्य कई कारक सामूहिक रूप से उत्तरदायी हैं।
जनन, दो प्रकार का होता है-(i) अलैंगिक जनन और (ii) लैंगिक जनन।
(i) अलैगिक जनन : जब संतति की उत्पत्ति एकल जनक द्वारा युग्मक निर्माण की भागीदारी के साथ अथवा इसकी अनुपस्थिति में हो तो उसे अलैंगिक जनन कहते हैं।
(ii) लैंगिक जनन : जब दो जनक विपरीत लिंग वाले जनन प्रक्रिया में भाग लेते हैं तथा नर और मादा युग्मक होता है तो उसे लैंगिक जनन कहते हैं। जनन के लाभ :
(i) जनन प्रजाति में एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी में निरंतरता बनाए रखता है।
(ii) संतति के जन्म के बाद उसमें वृद्धि होती है, उनमें परिपक्वता आती है
तथा इसके बाद वह नई संतति को जन्म देता है।
(iii) इसमें जन्म, वृद्धि तथा मृत्यु का चक्र सम्मिलित है।
(iv) ये धरती पर प्रजाति की आबादी का अस्तित्व बनाए रखने की विधि है।
(1) ये “जीवन से जीवन आता है” कथन को पूर्ण करता है।
प्रश्न 3. एक पुष्प में निषेचन-पश्च परिवर्तनों की व्याख्या करें।
उत्तर-परागण के बाद, परागकण वर्तिकाग्र पर अंकुरित होते हैं जिससे उनमें एक पराग-नलिका (pollen-tube) बन जाती है। यह पराग-नलिका वर्तिका के भीतर नीचे-नीचे बढ़ती जाती है और अंततः बीजाण्ड में पहुँच जाती है। बीजाण्ड के अन्दर भ्रूणकोश में अण्ड कोशिका होती है। पराग-नलिका का सिरा बीजाण्ड के भीतर फूट जाता है और दो नर युग्मक उसके भीतर छोड़ दिए जाते हैं। नर युग्मक अण्ड के साथ संलयित होकर युग्मनज (जाइगोट) बनाता है। संलयन को निषेचन कहते हैं। दूसरा नर-युग्मक द्विगुणित (diploid) द्वितीयक केन्द्रक के साथ संलयित हो जाता है और भ्रूणपोष (endosperm nucleus) केन्द्रक बनाता है। इस प्रक्रिया में दोहरा निषेचन होता है। द्वितीयक नाभिक में शुक्राणु के मिलने पर तीन युग्मक परस्पर समेकित होते हैं। अतः इसे त्रिसमेकन कहते हैं। त्रिसमेकन के पश्चात् प्राथमिक एन्डोस्पर्म केन्द्रक में परिवर्धन होकर एन्डोस्पर्म बन जाता है। एन्डोस्पर्म परिवर्धित होकर भ्रूण को पोषण प्रदान करता है। बाद में द्वार कोशिकाएँ तथा एन्टीपोडल कोशिकाएँ विघटित हो जाती हैं। बीज एक पका हुआ बीजाण्ड है जिसके अन्दर भ्रूण सुप्तावस्था में उपस्थित होता है। सबसे बाहर के आवरण को बीजचोल (testa) तथा अन्दर के आवरण को अन्त: भित्ति (tegmen) कहते हैं। भ्रूण (मूलांकुर एवं प्रांकुर) दो मांसल बीजपत्रों के बीच में बन्द होते हैं। फल एक निषेचित पका हुआ अण्डाशय होता है। अलग-अलग फलों में खाद्यशील भाग भी भिन्न-भिन्न होते हैं। अण्डाशय की दीवार पककर फल की फलभित्ति (pericarp) बनाती है।
प्रश्न 4. पौधों में लैंगिक जनन कैसे होता है?
उत्तर-पुष्पी पौधों में पौधे का जनन भाग फूल (flower) होता है। अधिकतर फूलों में नर और मादा दोनों जनन अंग होते हैं। प्ररूपी फूल में चार चक्र होते हैं-बाह्यदलपुंज (calyx) जिसमें अंखुड़ि (sepals) आती हैं, दलपुंज (corolla) जिसमें पंखुड़ियाँ आती हैं, पुमंग (androecium) जिसमें पुंकेसर (stamens) आते हैं तथा जायांग (gynoecium) जिसमें अण्डप (carpels) आते हैं (चित्र देखें)। पुमंग और जायांग का सीधा सम्बन्ध लैंगिक जनन से है। पुमंग पुष्प का नर भाग होता है। इसमें पुंकेसर (stamens) आते हैं। प्रत्येक
पुंकेसर में परागकोश (anthers) होते हैं। प्रत्येक परागकोश के भीतर परागकण (pollen grains) होते हैं जो पराग थैलों में स्थित नर युग्मक होते हैं।
जायांग पुष्प का मादा भाग होता है। इस चक्र में प्रत्येक सदस्य को स्त्रीकेसर (pistil) कहते हैं। प्रत्येक स्त्रीकेसर में तीन भाग होते हैं-ऊपरी चपटा वर्तिकाग्र (stigma), एक मध्यम लम्बा सिलिंडराकार वर्तिका (style) तथा एक निचला
फूला भाग अण्डाशय (ovary) ।
* वर्तिकाग्र परागण के दौरान परागकण (pollen-grains) प्राप्त करता है।
* वर्तिका पर एक उपयुक्त स्थान पर वर्तिकाग्र होता है जिस पर परागकण
आते हैं।
* अण्डाशय के भीतर बीजांड (ovules) होते हैं जो बीजाण्डासन (placenta) से जुड़े होते हैं। बीजाण्ड वे संरचनाएँ होती हैं जिनके भीतर भ्रूणकोष विकसित होते हैं और निषेचन होने के उपरांत परिपक्व होकर बीज बन जाते हैं। अण्डाशय के भीतर बीजाण्डों की व्यवस्था को बीजाण्डन्यास (placentation) कहते हैं।
प्रश्न 5. पौधों में युग्मनज निर्माण कैसे होता है? वर्णन कीजिए।
उत्तर-पौधों में युग्मनज निर्माण निम्न प्रकार से होता है-
(1) परागण के बाद, परागकण वर्तिकाग्र पर अंकुरित होते हैं जिससे उनमें एक पराग नलिका बन जाती है।
(ii)यह पराग नलिका वर्तिका के भीतर नीचे-नीचे बढ़ती जाती है और अंततः बीजांड में पहुँच जाती है।
(111) बीजांड के भीतर भ्रूणकोश में अण्ड कोशिका होती है।
(iv) पराग नलिका का सिरा बीजांड के भीतर फूट जाता है और दो नर युग्मक उसके भीतर को छोड़ दिए जाते हैं।
(v) एक नर युग्मक अण्ड के साथ संलयित होकर युग्मज (जाइगेट) बनाता है। इस संलयन को निषेचन कहते हैं।
(vi) दूसरा नर युग्मक द्विगुणित (डिप्लॉइड) द्वितीयक केन्द्रक के साथ संलयित हो जाता है और भ्रूणपोष (endosperm nucleus) केन्द्रक बनाता है (चित्र देखें)।
(vii) निषेचन के फलस्वरूप बने युग्मज में बार-बार विभाजन होकर एक भ्रूण (embryo) बन जाता है। भ्रूणपोष केन्द्रक में वृद्धि होकर बीज का भ्रूणपोष बन जाता है।
निषेचन हो जाने के उपरांत अंखुड़ियाँ, पंखुड़ियाँ, वर्तिका तथा वर्तिकाग्र अपविकसित होकर प्रायः झड़ जाते हैं। अण्डाशय की दीवार पककर फल की फलभित्ति (pericarp) बनाती है। प्रत्येक बीजांड विकसित होकर बीज बन जाता है। बीज के भीतर एक भावी पौधा अथवा भ्रूण होता है। निषेचन के बाद समूचा अण्डाशय फल बन जाता है।
प्रश्न 6. शुक्राणुजनन की प्रक्रिया को समझाएँ। इस प्रक्रिया में कौन-कौन से हार्मोन शामिल हैं और उनके कार्य क्या है?
उत्तर- पुरूषों में वृषण युग्मकजननक विधि द्वारा क्रमशः नर युग्मक यानी शुक्राणु उत्पन्न करते हैं। वृषण में अपरिपक्व नर जर्म कोशिकाएँ (शुक्राणुजनन स्पर्मेटोगोनियम) शुक्राणुजनन (स्पेमेटोजेनेसिस) द्वारा शुक्राणु उत्पन्न करती है जो किशोरावस्था के समय शुष्क होती है। शुक्रजनक नलिकाओं (सेमिनीफेरस ट्यूब्यूल्स) की भीतरी भित्ति में उपस्थित शुक्राणुजन समसूत्री विभाजन (माइटोसिस डिवीजन) द्वारा संख्या में वृद्धि करते हैं। प्रत्येक शुक्राणुजन द्विगुणित होता है और उसमें 46 गुणसूत्र (क्रोमोसोम) होते हैं। कुछ शुक्राणुजनों में समय-समय पर अर्धसूत्री विभाजन (मिओसिस डिवीजन) होता है जिनको प्रथम शुक्राणु कोशिकाएँ (प्राइमरी स्पर्मेटोसाइट्स) कहते हैं। एक प्राथमिक शुक्राणु कोशिका प्रथम अर्धसूत्री विभाजन करके दो समान अगुणित कोशिकाओं की रचना करते हैं जिन्हें द्वितीयक शुक्राणु कोशिकाएँ (सेकेण्डरी स्पर्मेटोसाइट्स) कहते हैं ऐसे उत्पन्न हुए कोशिका में 23 गुण सूत्र होते हैं। द्वितीयक शुक्राणु कोशिकाएँ दूसरे अर्धसूत्री विभाजन से चार बराबर अगुणित शुक्राणुप्रसु (स्पर्मेटिड्स) पैदा करते हैं। ये शुक्राणुप्रसु रूपांतरित होकर शुक्राणु (स्पर्म) बनाते हैं और इस प्रक्रिया को शुक्राणुजनन (स्पर्मिओजेनेसिस) कहा जाता है।
शुक्राणुजनन किशोरावस्था में प्रारंभ होता है, इस दौरान गोनेडोट्रॉपिन रिलिजिंग हार्मोन के स्रवण में काफी वृद्धि हो जाती है। जिसके कारण अग्र पीयूष
ग्रंथि (एंटेरियर पिट्युटरी ग्लैंड) पर कार्य करता है तथा दो गोनैडासेट्रॉपिन हार्मोन-पीत पिंडकर (ल्यूटनाइजिंग हार्मोन LH) और पुटकोद्दीपक हार्मोन (फॉलिक स्टिमुसेटिंग हार्मोन FSH) के स्रवण को उद्दीपत करता है। एचएच लीडिंग कोशिकाओं पर कार्य करता है ओर पुंजनों (एंड्रोजेन्स) के संश्लेषण और स्रवण को उद्दीपित करता है। इसके बदले में पुंजन शुक्राणुजनन की प्रक्रिया को उद्दीपित करता है। एप.एस०एच० सर्टोली कोशिकाओं पर कार्य करता है और
घटकों के स्रवण को उद्दीपित करता है जो शुक्राणुजनन की प्रक्रिया में सहायता करता है।
प्रश्न 7. निम्नांकित को परिभाषित करें
A. जीनोम
B. बहु-विकल्पता
C. घातक जीन
D. गुणसूत्र विपथन
E. वर्णान्धता
उत्तर- (A) जीनोम-जीवों के सारे गुण उनके DNA में पाए जानेवाले
नाइट्रोजनी क्षारों के अनुक्रम पर निर्भर करता है। विभिन्न जीवों में पाया जाने
वाला DNA अनुक्रम अलग-अलग होता है। इस विज्ञान के तहत जीवों के
जीनोम संबंधित आकड़ों का संग्रह विश्लेषण एवं इसके उपयोग की जानकारी
प्राप्त होती है।
(B) बहु विकल्पता-जब कोई लक्षण दो से ज्यादा एलीलों के द्वारा
निर्धारित होते हैं तो ऐसी स्थिति को बहुविकल्पता कहते हैं जैसे खरगोश के रंग
के लिए चार या अधिक एलील पाये जाते हैं।
(C) घातक जीन-वैसे जीन्स जो जीवों के मृत्यु का कारण बनते हैं
घातक जीन कहलाते हैं। घातक जीन प्रभावी सा अप्रभावी हो सकते हैं।
(D) गुणसूत्र विपथन-अर्धसूत्री विभाजन के समय कभी-कभी क्रोमोसोम
की संरचना में परिवर्तन हो जाता है। इन परिवर्तनों को क्रोमोसोमल विपथन
कहा जाता है।
(E) वर्णांधता-इस रोग से ग्रस्त रोगी लाल एवं हरे रंग की पहचान नहीं
कर सकते। इस रोग से संबंधित जोन x क्रोमोसोम पर पाया जाता है। एवं
सामान्य दृष्टिवाले एलील के समक्ष यह अप्रभावी होता है।
प्रश्न 8. कलिका तथा पत्र प्रकलिका को उदाहरण की सहायता से
परिभाषित कीजिए।
उत्तर-कलिका में पर्व अविकसित अवस्था में रहते हैं और अपरिपक्व
पत्तियों के एकत्र होने से ढके रहते हैं। अधिकतर पौधों में कलिकाएँ शाखा,
फूल और पत्ति से परिणत होती रहती है। जैसे-बालकाट आदि
कुछ पौधों में कक्षीय कलिकाएँ जो पत्ती के पाश्र्व भाग में होती हैं
जैसे रूपांतरण-जंगली से रतालू फूलकर इत्यादि मांसल। हो जाती है इन्हें पत्र प्रकलिका कहते हैं |
Join Telegram – Click Here
Read Also –